इस कहानी–संग्रह की सबसे बेहतरीन बात यही है कि एक ही किताब में आपको ज़हनी तौर पर दो अलग–अलग शैलियों के रास्ते मिलते हैं। अकबर की कहानियाँ सरल तरीक़े से अपने किरदारों को बुनते हुए एक ऐसे घर, ऐसे मोहल्ल्ले का लिबास तैयार करती हैं जो लगभग हर किसी का पहना हुआ होता है। चाहे किरदार में कोई बहरूपिया हो, चाहे कोई मौलवी या घर के आख़िरी कौने में बैठी एक औरत। वहीं आज़म की कहानियाँ आपको ऐसे सरीयल रास्ते पर ले जाती हैं जहाँ किरदार तो आज के दौर के हैं पर उनका ताना इतिहास से जुड़ा है। शैली में फ़ैक्ट और फ़ेंटसी की इतनी घुमावदार गलियाँ हैं कि कभी–कभी इतिहास और भविष्य दोनों एक–से लगने लगते हैं। चाहे मामा शकुनी हो, बाबर हो या लैला–सी कोई किवणी। शानदार मँझी हुई नयी क़लम आपको पुराने लेखकों को याद करने का मौका ज़रूर देती है।